Wednesday, August 10, 2011

अंतत:

"यार इस लड़के का तुम्हीं कुछ करो आवारा लड़कों की सोहबत में कुछ ऐसा पड़ा कि हाईस्कूल भी नहीं कर पाया. आज भी वही सब हरकतें हैं. सारा दिन आवारागर्दी दादागीरी बस. आखिर यह सब कब तक चलेगा. तुम इसे कहीं चपरासी की ही नौकरी लगवा दो तो बड़ा अहसान होगा." मेरे पुराने मित्र नन्दलाल जी अपने पुत्र नरेश के लिये काफी चिंतित थे. "क्यों नरेश कहीं प्रयास तो किया होगा ?" मैने पूछा तो नरेश ने उत्तर दिया "जी हां अंकल जी कई जगह गया. वे कहते हैं कि मैं योग्य नहीं हूँ. मुझे काम का कोई अनुभव भी नहीं है और मेरे चरित्र की गारण्टी कौन देगा." " नन्दलाल जी मेरे यहाँ तो कोई जगह नहीं है पर अन्य जगह प्रयास करूंगा." एक झूठा आश्वासन देकर मैने उन्हें दरवाजे तक छोड़ा. शहर में स्थानीय निकायों के चुनाव घोषित हो चुके थे. अचानक मेरी नजर दीवार पर चिपके एक पोस्टर पर पड़ी जिसमें नरेश की तस्वीर थी. "आवारा लड़का बाप का पैसा ऐसे बर्बाद कर रहा है. इसी पैसे से कोई चाय या पान की दुकान खोल लेता तो अपने साथ-साथ अपने बाप का भी भला करता" मैं बुदबुदाते हुये दफ्तर चला गया. एक दिन सुबह कई लड़कों के साथ नरेश हाथ में मिठाई का लिये मेरे दरवाजे पर खड़ा था. मेरे पैर छूकर वह बोला "अंकल जी मैं चुनाव जीत गया. अब आपको अगले पांच साल तक मेरे लिये नौकरी ढूंढने की कोई जरूरत नहीं है." मैं हैरानी से उसे देख रहा था. मैं सोच रहा था, जो व्यक्ति एक छोटी सी नौकरी के भी योग्य नहीं समझा गया, जिसे काम का कोई अनुभव भी नहीं था तथा जिसका चरित्र प्रमाणपत्र कोई देना नहीं चाहता था वह आज प्रशासन का एक अंग बन गया है. आज वह दूसरों को नौकरी पर रखवा भी सकता है तथा चरित्र प्रमाणपत्र भी दे सकता है. शायद वह सही जगह पहुँच गया है. पास ही ट्राँजिस्टर पर गाना बज रहा था 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों.'


लेखक

उमेश मोहन धवन

Sunday, February 27, 2011

असली सम्पत्ति

वह रोज लोकल ट्रेन से दफ्तर जाता था. सहयात्रियों में आज “जीवन की असली सम्पत्ति” विषय पर बहस शुरु हो चुकी थी. “भैया जीवन की असली सम्पत्ति तो पैसा ही है. बाकी सब मन को बहलाने की बातें हैं.” पहला तर्क देकर खिड़की से बाहर देखने लगा. “पैसा नहीं आदमी की सेहत ही असली पूंजी है.रुपया है पर सेहत खराब है तो उसे वह चाटेगा क्या ?” दूसरे का तर्क अलग था. “मैं जीवन में रुपया तो नहीं जोड़ पाया पर मैने बच्चों को पढ़ा लिखा के काबिल बना दिया. अब वही मेरी सम्पत्ति हैं.पैसा हो पर बच्चे आवारा घूम रहे हों तो ऐसा पैसा किस काम का” एक अन्य यात्री बोल पड़ा़. “अजी छोड़िये जनाब वही बच्चे आपको कितना पूछ रहे हैं हमें सब पता है. ये बीवी बच्चे सब मिथ्या है. अगले जनम के लिये असली धन है भगवान का ध्यान.” “खाली भगवान भजन से कुछ नहीं होता चाचा करम भी अच्छे होने चाहिये” एक युवा यात्री ने बात काटते हुये कहा. “अच्छे कर्मों का फल जरूर मिलता है, चाहे इस जनम में चाहे अगले जनम में.” बहस अब चरम पर थी.” अजी अगला जनम किसने देखा है जनाब. कर्मो का फल मिला है किसी को आजतक ? ये कलयुग है. यहाँ अच्छे करम करने वाले ही सबसे ज्यादा दुख उठाते हैं. आदमी के पास बुढ़ापे में एक मकान हो और हो ढेर सा पैसा फिर चाहे वह अच्छे कर्मों से कमाया हो या बुरे कर्मों से क्या फर्क पड़ता है ?” बहस वहीं पर आ गयी जहाँ से शुरु हुई थी. स्टेशन भी आ गया था. सब के साथ वह भी उतर गया. वह जीवन में कई बार इस तरह की बहस का साक्षी रहा था पर लोग कभी एकमत नहीं होते थे. आज वह रिटायर हो रहा है. वह भी और लोगों की तरह जीवन की असली सम्पत्ति हासिल कर लेना चाहता है पर उसे पता तो चले कि जीवन की असली सम्पत्ति आखिर है क्या.

शोक

बेटा टीवी जरा धीमे कर दो. बल्कि मैं तो कहता हूं कि बंद ही कर दो. तुम्हें पता नहीं अभी परसों ही पड़ोस वाले सक्सेना अंकल का निधन हुआ है. अभी चौथा भी नहीं हुआ है. आवाज बाहर तक जाती है, अच्छा नहीं लगता. सुभाष ने पास आकर अपने बीस वर्षीय बेटे मनीष को समझाने का प्रयास किया.  अरे पापा कितना इंपार्टेंट मैच आ रहा है. और आज मेरी छुट्टी भी है. उन्हें मरे दो दिन हो गये हैं न. अब कितने दिन शोक मनाया जायेगा. मनीष ने बिना गर्दन घुमाये जवाब दिया. पर बेटा आवाज बंद करके भी तो मैच देख सकते हो. तुम तो जानते ही हो कि वे मेरे कितने अच्छे मित्र थे. हमारा रोज का उठना बैठना था सुभाष ने एक बार फिर प्रयास किया. अरे पापा आप भी किस सदी की बात कर रहे हैं. इस देश में तो कितने लोग रोज मर रहे हैं. तो क्या हम रोज टीवी न देखें. वैसे भी कोई अपने घर का थोड़े ही मरा है. फिर हम क्यों इतना शोक मनायें. बेटे की नजरें अब भी टीवी से हटी नहीं थीं. सुभाष का मन हुआ कि खुद ही टीवी बंद कर दे पर बेटे के तेवर देख ऐसा कर न सका. उसके तर्क सुन वह और कुछ तो नहीं कह सका बस केवल इतना ही बोल पाया बेटे यदि तुम इसी मानसिकता पर चलते जाओगे तो देखना एक दिन अपने बाप का शोक भी  नहीं मनाओगे.